जाग तुझको दूर जाना है
महादेवी वर्मा
परिचय
महादेवी वर्मा छायावाद की प्रमुख कवयित्री है जिन्होंने काव्य और गद्य दोनों क्षेत्र में अपनी प्रतिभा से प्रसिद्धि प्राप्त की है। इन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम०ए० किया। इन्होंने प्रयाग महिला विद्यापीठ में आचार्य के पद पर कार्य किया। 1956 में इन्हें पद्मभूषण की उपाधि से अलंकृत किया गया। 1988 में इन्हें मरणोपरान्त पद्मविभूषण से भी सम्मानित किया गया।
महादेवी वर्मा के काव्य में रहस्यवाद का प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है। इनकी कविताओं में प्रेम, विरह-वेदना और करुणा की अभिव्यक्ति हुई है। इन्हें आधुनिक युग की मीरा भी कहा जाता है।
इन्होंने चाँद मासिक पत्रिका का संपादन किया।
महादेवी वर्मा की भाषा में संस्कृत के शब्दों का अधिक प्रयोग किया गया है जिसमें सहजता, कोमलता और मधुरता है। महादेवी वर्मा की काव्य शैली मुक्तक शैली ( किसी सीमित विषय पर छोटी कविता) है। रामचन्द्र शुक्ल ने कहा है - " गीत लिखने में जैसी सफलता महादेवी जी को मिली है, वैसी किसी और को नहीं।"
प्रमुख रचनाएँ - नीहार, रश्मि, नीरजा, दीपशिखा, यामा (ज्ञानपीठ पुरस्कार) आदि इनके काव्य संग्रह हैं।
कठिन शब्दार्थ
चिर सजग - हमेशा सावधान
उनींदी - नींद से भरी
अलसित - अशोभित
तिमिर - अंधकार
निठुर - निर्दयी
सजीले - सुन्दर
क्रन्दन - सुदन, रोना
कारा - जेल
मधुप - भौंरा
वज्र का उर - कठोर हृदय
मलय - मलयाचल से आने वाली शीतल-सुगंधित हवा
वात - हवा
उपधान - तकिया
अमरता सुत - अमरत्व का पुत्र
दृग - आँख
मानिनी - मान करने वाली, गर्ववती
अंगार शैय्या - आग का बिस्तर
मृदुल - कोमल
प्रश्न
"जाग तुझको दूर जाना" गीत में कवयित्री ने देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए देशवासियों को किन व्यवधानों पर विजय प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया है ? समझाकर लिखिए।
उत्तर
महादेवी वर्मा छायावाद की प्रमुख कवयित्री है जिन्होंने काव्य और गद्य दोनों क्षेत्र में अपनी प्रतिभा से प्रसिद्धि प्राप्त की है। महादेवी वर्मा के काव्य में रहस्यवाद का प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है। इनकी कविताओं में प्रेम, विरह-वेदना और करुणा की अभिव्यक्ति हुई है। इन्हें आधुनिक युग की मीरा भी कहा जाता है।
महादेवी वर्मा की भाषा में संस्कृत के शब्दों का अधिक प्रयोग किया गया है जिसमें सहजता, कोमलता और मधुरता है।
प्रमुख रचनाएँ - नीहार, रश्मि, नीरजा, दीपशिखा, यामा (ज्ञानपीठ पुरस्कार) आदि इनके काव्य संग्रह हैं।
जाग तुझको दूर जाना कविता में देशभक्ति का स्वर है जिसके द्वारा कवयित्री ने देश की आज़ादी के लिए लड़ रहे देशवासियों को जागरण का संदेश देते हुए उन्हें सदैव सतर्क, सावधान रहने के लिए प्रेरित किया है। कवयित्री ने देशभक्तों को जागरण का संदेश दिया है ताकि वे आज़ादी के मार्ग में आने वाले व्यवधानों पर विजय प्राप्त कर सके और अपने देश को गुलामी की जंज़ीर से मुक्त करा पाने में सफल हो सके। कठिन से कठिन परिस्थितियाँ भी मार्ग में बाधक नहीं बन सकती हैं। आसमान में काले बादल भर जाएँ,प्रलय आ जाए, तूफ़ान-झंझावत आ जाए, हिमालय में भी भूचाल आ जाए। चारों ओर भंयकर अंधकार ही क्यों न फैल जाए लेकिन इन कठिनाई भरे रास्तों पर तुम्हारे कदमों के निशान पड़ने चाहिए अर्थात कितनी भी बड़ी बाधा, अड़चन या कठिनाई आए पर तुम्हारी गति को रोक न सके। कवयित्री देशभक्तों को जागृत करते हुए कहती हैं कि मार्ग की बाधाओं से न डरकर उन्हें निरन्तर प्रयत्नशील रहना चाहिए।
आज पी आलोक को डोले तिमिर की घोर छाया,
आज या विद्युत-शिखाओं में निठुर तूफ़ान बोले!
पर तुझे है नाश-पथ पर चिह्न अपने छोड़ आना!
जाग तुझको दूर जान॥
मनुष्य का जीवन अनमोल है। हमें जीवन को व्यर्थ नहीं करना चाहिए। अपने जीवन के लक्ष्य को पहचानना और उसे प्राप्त करने के लिए सतत प्रयत्नशील रहना ही जीवन का पुरुषार्थ है। जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मार्ग की बाधाओं को दूर करना भी व्यक्ति का कर्त्तव्य है। मानवीय रिश्ते-नाते, मोहमाया इसके बीच में बाधक न हों बल्कि साधक हों। भारत माँ को गुलामी से मुक्त कराना हमारा एकमात्र लक्ष्य होना चाहिए। मोहमाया का आकर्षण हमें पथ से विचलित करता है। ओस की बूँदों से भीगे पुष्प बड़े आकर्षक लगते हैं, भौंरों की गुनगुनाहट हमारा ध्यान अपनी ओर खींचती है। कवयित्री देशवासियों को संबोधित करते हुए कहती हैं कि जब पूरा देश अन्याय, शोषण और गुलामी के बंधन से जकड़ा हुआ है और भयानक कष्ट झेल रहा हो तो क्या उस समय हमें क्षणिक भोग-विलास के बंधन में जकड़ना शोभा देता है।जिस प्रकार छाया का कोई अस्तित्व नहीं है, वह हमारे पी्छे चलती है उसी तरह मोहमाया भी क्षणिक है, उसे अपना बंधन नहीं बनाना चाहिए।
तू न अपनी छाँह को अपने लिए कारा बनाना।
जाग तुझको दूर जाना॥
कवयित्री कहती हैं कि भारतवासियों का हृदय वज्र के समान कठोर है। उसे किसी भी प्रकार कमज़ोर नहीं पड़ना चाहिए। जीवन सुधा का पान करने वाले भारतीय दो घूँट मदिरा पान कर बेहोश क्यों हो जाना चाहते हैं। हमारे अंदर जोश, उमंग और उत्साह रूपी आँधी आज़ादी रूपी लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायक है लेकिन वह ही शांत होकर मलयाचल से आने वाली शीतल-सुगंधित वायु का तकिया बनाकर सो जाएगी तब हम भारतीय अपने लक्ष्य को कैसे पा सकेंगे। आँधी हमारी शक्ति का परिचायक है और आलस्य हमारे लिए अभिशाप है। कवयित्री कहती हैं कि भारतीयों की आत्मा अमर है, अत: वह अमरता का पुत्र है फिर वह अपने अंदर मृत्यु का डर क्यों बिठा रहा है। आलस्य पूरी दुनिया का अभिशाप है जो व्यक्ति को सक्रिय जीवन रूपी अमृत से वंचित कर देता है।
अमरता-सुत चाहता क्यों मृत्यु को उर में बसाना?
जाग तुझको दूर जाना॥
कवयित्री कहती हैं कि सफलता-असफलता जीवन के दो पहलू हैं। हर असफलता में सफलता छिपी होती है। एक बार असफल हो जाने पर निराश नहीं होना चाहिए। असफलता ही सफलता का सोपान है। देश को आज़ाद कराने के लिए उत्साह, जोश और उमंग की जरूरत है। असफलताओं के कारण ठंडी साँस में यह मत कहो कि उस जलती हुई संघर्ष की कहानी को भूल जाओ। कवयित्री देशभक्तों की निराशा में आशा का संचार करना चाहती है। हर हार के बाद हमें सोचना चाहिए कि हमारे प्रयत्न में कहाँ कमी रह गई। आँखों में आँसू तभी अच्छे लगते हैं जब हृदय में आग हो अर्थात अपना लक्ष्य सामने हो, उसे पाने की दृढ़-इच्छा शक्ति हो। असफल होने पर रोना भी आए तो अच्छा है क्योंकि उससे असफलता का मैल धुल जाता है। कवयित्री को पक्का विश्वास है कि वह दिन दूर नहीं जब हम अपने प्रयत्न में सफल होंगे। जिस तरह पतंगा एक क्षण में जलकर राख हो जाता है और दीपक अमर रहता है उसी तरह देशभक्तों का बलिदान ही आज़ादी के दीपक की अमर कहानी कहेगा। आज हमारे मन में जो देशभक्ति की आग है वही भारतवासियों के जीवन पथ को कोमल कलियों से भर देगी।
निष्कर्ष में हम कह सकते हैं कि आज भी देश कई तरह की कठिनाइयों से घिरा हुआ है। भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी, गरीबी, धार्मिक असहिष्णुता, अनैतिकता आदि समस्याओं ने लगातार जीवन के हर मोर्चे पर असफलता का वातावरण तैयार किया है लेकिन हमें चाहिए कि हम अपने आत्मविश्वास, मेहनत, साहस, लोकतांत्रिक मूल्यों और एकाग्रता के बल पर देश की समस्याओं से जूझें तथा व्यर्थ के आकर्षणों से बचें।