भिक्षुक
कवि परिचय
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला हिन्दी की छायावादी काल के प्रमुख कवि हैं। इन्हें बंगला, अंग्रेजी और संस्कृत का अच्छा ज्ञान था।निराला बहुमुखी प्रतिभा के धनी साहित्यकार थे। इन्होंने कविताओं के अतिरिक्त कहानियाँ, आलोचनाएँ, निबंध आदि भी लिखे हैं।सन 1916 में इन्होंने "जूही जी कली" की रचना की। इन्होंने अपनी कविताओं में प्रकृति-वर्णन के अतिरिक्त शोषण के विरुद्ध विद्रोह, शोषितों एवं दीनहीन जन केप्रति सहानुभूति तथा पाखंड के प्रति व्यंग्य की अभिव्यक्ति की है। निराला की भाषा सहज, भावानुकूल है, जिसमें संस्कृत के शब्दों का प्रयोग मिलता है।
प्रमुख रचनाएँ - परिमल, गीतिका, अनामिका, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, अणिमा, अपरा, बेला, नए पत्ते, राम की शक्ति पूजा आदि।
शब्दार्थ
दो टूक कलेजे के करता – हृदय को बहुत दुख पहुँचाता हुआ
पछताता – पश्चाताप करता हुआ
लकुटिया – लाठी
टेक – सहारे, टिकाकर
दाता भाग्य विधाता – देने वाला, भाग्य का निर्माण करने वाला ईश्वर
अड़े हुए – तत्पर
अमृत – अमर करने वाला पेय पदार्थ
झपट लेना – छीन लेना