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स्वर्ग बना सकते हैं

रामधारी सिंह 'दिनकर'

लेखक परिचय

रामधारी सिंह 'दिनकर' हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार हैं। वे आधुनिक युग के  श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं। बिहार प्रान्त के बेगुसराय जिले का सिमरिया घाट उनकी जन्मस्थली है। उन्होंने इतिहास, दर्शनशास्त्र और राजनीति विज्ञान की पढ़ाई पटना विश्वविद्यालय से की। उन्होंने संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी और उर्दू का गहन अध्ययन किया था।
'दिनकर' स्वतन्त्रता पूर्व एक विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए और स्वतन्त्रता के बाद राष्ट्रकवि के नाम से जाने गए। एक ओर उनकी कविताओ में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रान्ति की पुकार है तो दूसरी ओर कोमल मानवीय भावनाओं की अभिव्यक्ति है। उन्होंने सामाजिक और आर्थिक समानता और शोषण के खिलाफ कविताओं की रचना की। 
उनकी पुस्तक संस्कृति के चार अध्याय  के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा उर्वशी के लिए भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया। भारत सरकार ने इन्हें पद्‌म भूषण से सम्मानित किया।
प्रमुख रचनाएँ - कुरुक्षेत्र, रेणुका, हुंकार, रश्मिरथी, परशुराम की प्रतीक्षा आदि।

कठिन शब्दार्थ

धर्मराज - युधिष्ठिर, ज्येष्ठ पांडु पुत्र
क्रीत - खरीदी हुई
मुक्त समीरण - खुली हवा
आशंका - भय
विघ्न - अड़चन, बाधा
न्यायोचित - न्याय के अनुसार
सुलभ - आसानी से प्राप्त
भव - संसार, जगत
सम - समान
शमित - शान्त
परस्पर - आपस में
भोग संचय - भोल विलास की वस्तुएँ धन-संपत्ति आदि इकट्‌ठा करना
विकीर्ण - फैला हुआ
तुष्ट - संतुष्ट

कविता का मूलभाव

प्रस्तुत कविता “स्वर्ग बना सकते हैं” के माध्यम से कवि ने मानव-जाति को यह समझाने की कोशिश की है कि इस विशाल धरती पर सबका जन्म समान रूप से हुआ है। धरती पर मौजूद समस्त संसधानों पर सम्पूर्ण मानव-जाति का अधिकार है और उसे अपने विकास के लिए उनके उपयोग की स्वतंत्रता प्राप्त होनी चाहिए किन्तु कुछ स्वार्थी मनुष्यों ने लोभवश उन पर अधिकार जमाना शुरू कर दिया है और समाज में भेद-भाव को जन्म दिया है जिससे संघर्ष की सृष्टि हो रही है। कवि का मानना है कि धरती पर सुख के इतने साधन मौजूद हैं कि उनसे सभी मनुष्यों की आवश्यकताएँ पूर्ण हो सकती हैं। अत: मनुष्यों को अपने लोभ का त्याग कर समाज में स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की स्थापना करनी चाहिए और धरती को स्वर्ग के समान बनाने की कोशिश करनी चाहिए।

पंक्तियों पर आधारित प्रश्न

प्रभु के दिए हुए सुख इतने

हैं विकीर्ण धरती पर

भोग सकें जो उन्हें जगत में,

कहाँ अभी इतने नर ?

सब हो सकते तुष्ट, एक सा

सब सुख पा सकते हैं

चाहें तो पल में धरती को

स्वर्ग बना सकते हैं।

 

प्रश्न


(i) धरती पर किसका दिया हुआ क्या फैला हुआ है ? स्पष्ट कीजिए।
(ii) "कहाँ अभी इतने नर" पंक्ति से कवि क्या समझाना चाहते हैं ?
(iii) यहाँ किनके तुष्ट होने की बात की जा रही है ? वे क्यों तुष्ट नहीं हैं ? वे क्या पाकर संतुष्ट हो सकते हैं ?
(iv) पल में धरती को स्वर्ग कैसे बनाया जा सकता है ?

 

उत्तर


i) धरती पर ईश्वर के दिए हुए असीम सुख के साधन फैले हुए हैं। अन्न उत्पन्न करने वाली उपजाऊ मिट्‌टी, वायु, पर्वत, झरने, नदियाँ, धूप, चाँदनी, सूरज की जीवनदायिनी किरण आदि। मानव इनका उपयोग कर सुख-शांति से पूर्ण जीवन व्यतीत कर सकता है।

ii) प्रस्तुत पंक्ति द्‌वारा कवि यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि धरती ने मनुष्य को असीमित संसाधन दिए हैं जिसका उपयोग मनुष्य अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए कर सकता है। प्रकृति में संसधानों का इतना भंडार है कि मनुष्य चाहे भी तो उसका उपयोग कर उसे समाप्त भी नहीं कर सकता है। अत: यदि सबको समान अधिकार मिले तो सभी व्यक्ति इन संसाधनों का भरपूर प्रयोग कर सकते हैं और संसार से वैमनस्य का भाव भी मिट जाएगा।

iii) यहाँ मनुष्यों के उस वर्ग की बात हो रही है जिनके प्रकृति द्‌वारा प्रदान किए गए सुख के साधनों पर कुछ स्वार्थी और चालाक लोगों ने अपना अधिकार स्थापित कर लिया है। अभाव से ग्रसित मनुष्यों का यह वर्ग संतुष्ट नहीं है क्योंकि कड़ी परिश्रम के पश्चात भी इन्हें रोटी, कपड़ा और महान जैसी आवश्यक जरूरतों से विमुख रहना पड़ता है। यदि उन लोगों को न्यायोचित अधिकार मिले तो वे भी संतुष्ट हो जाएँगे।

iv) कवि रामधारी सिंह "दिनकर" प्रगतिशील कवि हैं। उन्होंने सदैव शोषक वर्ग का विरोध किया है और शोषित वर्ग के हितों की रक्षा के लिए अपनी कविताओं का स्वर क्रांतिमय बनाया है। उनका मानना है कि धरती पर सभी मनुष्य समान रूप से जन्म लेते हैं और जन्म लेते ही धरती के समस्त संसाधनों पर उसका अधिकार बनता है। यदि सभी मनुष्यों को न्यायोचित अधिकार प्राप्त हो सके तथा समाज में स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की स्थापना संभव हो सके तो धरती को स्वर्ग बनने से कोई नहीं रोक सकता।

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