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चलना हमारा काम है

शिवमंगल सिंह "सुमन"

लेखक परिचय

शिवमंगल सिंह 'सुमन का हिन्दी के शीर्ष कवियों में प्रमुख नाम है। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में हुआ। प्रारम्भिक शिक्षा भी वहीं हुई। ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज से बी॰ए॰ और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से एम॰ए॰ , डी॰लिट् की उपाधियाँ प्राप्त कर ग्वालियर, इन्दौर और उज्जैन में उन्होंने अध्यापन कार्य किया। वे विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलपति भी रहे।
उन्हें सन् 1999 में भारत सरकार ने साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्‌मभूषण से सम्मानित किया था। 'सुमन' जी ने छात्र जीवन से ही काव्य रचना प्रारम्भ कर दी थी और वे लोकप्रिय हो चले थे। उन पर साम्यवाद का प्रभाव है, इसलिए वे वर्गहीन समाज की कामना करते हैं। पूँजीपति शोषण के प्रति उनके मन में तीव्र आक्रोश है। उनमें राष्ट्रीयता और देशप्रेम का स्वर भी मिलता है।
इनकी भाषा में तत्सम शब्दों के साथ-साथ अंग्रेजी और उर्दू के शब्दों की भी प्रचुरता है।

प्रमुख रचनाएँ - हिल्लोल, जीवन के गान, प्रलय सृजन, मिट्‌टी की बारात, विश्वास बढ़ता ही गया, पर आँखें नहीं भरी आदि।

कठिन शब्दार्थ

गति - रफ़्तार
विराम - आराम, विश्राम
पथिक - राही
अवरुद्‌ध - रुका हुआ
आठों याम - आठों पहर
विशद - विस्तृत
प्रवाह - बहाव
वाम - विरुद्‌ध
रोड़ा - रुकावट
अभिराम - सुखद

केंद्रीय भाव

शिवमंगल सिंह "सुमन"‍ द्‌‌वारा रचित कविता "चलना हमारा काम है" प्रेरणादायक कविता है जो निराशा में आशा का संचार करने वाली कविता है। प्रस्तुत कविता केन्द्रीय भाव यह है कि मानव को विघ्न-बाधाओं पर विजय प्राप्त करते हुए निरन्तर आगे बढते रहना चाहिए। गति ही जीवन है। जीवन में सफलता-असफलता, सुख-दुख आते रहते हैं। जीवन में हार-जीत लगी रहती है। अत: सभी परिस्थितियों में आत्मविश्वास बनाए रखते हुए जीवन में गतिशीलता बनाए रखनी चाहिए। जड़ता मानव विकास के लिए खतरनाक है।

 

अत: हमें अपनी बुद्‌धि की गतिशीलता और रचनात्मकता को कायम रखनी चाहिए। मानव जीवन सुख-दुख, सफलता-असफलता, आशा-निराशा के दो किनारों के बीच निरन्तर चलता रहता है और उसके इसी निरन्तर गतिशीलता में मानवता का विकास निहित है।

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