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वह जन्मभूमि मेरी

- सोहनलाल द्‌विवेदी

लेखक परिचय

सोहनलाल द्‌विवेदी  हिन्दी के प्रसिद्‌ध कवि हैं। द्विवेदी जी हिन्दी के राष्ट्रीय कवि के रूप में प्रतिष्ठित हुए। ऊर्जा और चेतना से भरपूर रचनाओं के इस रचयिता को राष्ट्रकवि की उपाधि से अलंकृत किया गया। महात्मा गांधी के दर्शन से प्रभावित, द्विवेदी जी ने बालोपयोगी रचनाएँ भी लिखीं। 1969 में भारत सरकार ने आपको पद्‌मश्री उपाधि प्रदान कर सम्मानित किया था।

 1938 से 1942 तक इन्होंने राष्ट्रीय पत्र "अधिकार" का संपादन किया।

द्‌विवेदी जी की रचनाओं में गाँधीवाद, राष्ट्रीय जागरण, भारत की गरिमापूर्ण संस्कृति, ग्राम सुधार, हरिजन-उद्‌धार और समाज सुधार का स्वर मुखरित हुआ है।

इनकी भाषा में आमजन को ध्यान में रखकर शब्दों का प्रयोग किया गया है। भाषा सहज तथा ओजपूर्ण है।

प्रमुख रचनाएँ - भैरवी, पूजागीत सेवाग्राम, प्रभाती, युगाधार, कुणाल, चेतना, बाँसुरी, बच्चों के बापू, शिशु भारती, चाचा नेहरू, दूध बतासा आदि।

शब्दार्थ

सिंधु - समुद्र

नित - प्रतिदिन, रोज़

सुयश - प्रसिद्‌धि, कीर्ति, ख्याति

पग - चरण

अमराइयाँ - आम का बगीचा
जगमग - चमकदार

छहरना - बिखरना

पुनीत - पवित्र

रघुपति - दशरथ पुत्र राम

त्रिवेणी - तीन नदियों का संगम ( गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का

              संगम जो प्रयाग, इलाहाबाद में है।)

गीता - कुरुक्षेत्र के मैदान में श्रीकृष्ण द्‌वारा अर्जुन को दिया गया

           पद्‌यात्मक उपदेश 

वंशी - बाँसुरी

पुण्यभूमि - पवित्र धरती

स्वर्णभूमि - धन-धान्य से परिपूर्ण भूमि

मलय पवन - दक्षिण भारत में स्थित मलय पर्वत से आने वाली सुगंधित हवा

मूलभाव

कवि ने" वह जन्मभूमि मेरी" के माध्यम से भारत के प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ-साथ उसकी महानता और गौरव का उल्लेख भी किया है। हिमालय के समान  अटल एवं उच्च विचार तथा समुद्र की तरह तरल, प्रेमपूर्ण व्यवहार का वर्णन कर भारतीयों में राष्ट्रीय गौरव की भावना जागृत करना कवि का उद्‌देश्य रहा है। भारत में मानव और पशु-पक्षी सभी आनन्दित हैं। नदियों की धारा अविरल गति से बहती रहती है जो निरन्तर कर्म करने का संदेश देती है। इस देश में मर्यादा पुरुषोत्तम राम और आदर्श सीता ने अपने चरित्र से मानव जाति को प्रेरणा दी है। श्रीकृष्ण के निष्काम कर्मयोग तथा बुद्‌ध के ज्ञान और दया ने इस देश को महिमाशाली बनाया है। भारत पुण्यभूमि, स्वर्णभूमि, धर्मभूमि, कर्मभूमि, युद्‌धभूमि और बुद्‌धभूमि भी है जिसने समस्त मानव जाति को सदियों से प्रेरित किया है और आने वाले समय में भी सबका मार्ग-दर्शन करती रहेगी।

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