तुलसीदास के पद
तुलसीदास
कवि परिचय
हिन्दी साहित्य के भक्तिकाल में गोस्वामी तुलसीदास का स्थान बहुत महत्त्वपूर्ण है। तुलसीदास के जन्म और मृत्यु के विषय में विद्वानों में मतभेद है। अधिकांश विद्वानों का मानना है कि इनका जन्म उत्तर प्रदेश के बाँदा ज़िले के राजापुर नामक गाँव में सन् 1497 में हुआ था। गुरु नरहरिदास इनके गुरु थे। तुलसीदास ने भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में प्रतिष्ठित किया। उन्होंने राम कथा पर आधारित विश्व-प्रसिद्ध महाकाव्य " रामचरितमानस" की रचना की। तुलसीदास राम के अनन्य भक्त थे। तुलसीदास ने ब्रज और अवधि दोनों भाषा में समान रूप से लिखा।
तुलसीदास ने अपनी रचनाओं के द्वारा आदर्श समाज की स्थापना पर जोर दिया जिसमें न्याय, धर्म, सहानुभूति, प्रेम और दया जैसे मानवीय गुणों पर विशेष ध्यान दिया है।
प्रमुख रचनाएँ - विनय-पत्रिका,गीतावली, कवितावली, दोहावली, पार्वती मंगल, हनुमान बाहुक, रामलला नहछू, जानकी मंगल, कृष्ण-गीतावली आदि।
कठिन शब्दार्थ
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मंदिर - महल
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निहारति - देखती
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कंकन - कंगन
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यातें - इसके
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कागर - पक्षियों के झड़े पंख
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कीर - तोता
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चीर - वस्त्र
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सरीरु - शरीर
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लस्यो - शोभित हुआ
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नीरु - नीर, पानी
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सबै सनमानी - सबका सम्मान करके
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औध - अयोध्या
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राजिव लोचन - कमल के समान नेत्रों वाले
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बताऊ - बटोही, पथिक
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विरद - बड़ाई, यश
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अधम - नीच
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उधारे - उद्धार करना, उबारा
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तारे - उद्धार किया
पाठ से पहले - अन्तर्कथाएँ
जटायु
जटायु एक गिद्ध पक्षी थे। जब रावण सीता का हरण करके आकाश मार्ग से लंका की ओर जा रहा था तब सीता की दुख-भरी वाणी सुनकर जटायु ने उन्हें पहचान लिया और उन्हें छुड़ाने के लिए रावण से युद्ध करते हुए गंभीर रूप से घायल हो गए। सीता को खोजते हुए राम जब वहाँ पहुँचे तब जटायु ने रावण के संबंध में सूचना देकर राम के चरणों में ही प्राण त्याग दिए।
मारीच
मारीच रावण का मामा था। उसने स्वर्ण मृग का रूप धारण करके राम और सीता के साथ छल किया था ताकि राम उसके पीछे चले जाएँ और पीछे से रावण सीता का हरण कर ले। मारीच राम के हाथों मारा गया और उसे सद्गति प्राप्त हुई।
व्याध
व्याध से तात्पर्य शबरी से है जो एक प्राचीन जंगली शबर जाति की स्त्री थी। उसे पूर्वाभास हो गया था कि भगवान राम उसी वन के रास्ते से जाएँगे जहाँ वह रहती थी। जब राम वहाँ पहुँचे तो उसने अपने चखे हुए मीठे बेर खिलाकर उनका आतिथ्य किया। भगवान राम ने उसका आतिथ्य स्वीकार किया तथा उसे परमगति प्रदान की। इस प्रकार उन्होंने व्याध का उद्धार किया।
कुछ विद्वानों के अनुसार यहाँ व्याध शब्द का प्रयोग कवि वाल्मीकि के लिए किया गया है जिन्होंने "रामायन" की रचना की थी। यह कहा जाता है कि वाल्मीकि राम का उल्टा नाम जपकर ही तर गए थे।
अहिल्या
भगवान इंद्र ने गौतम ऋषि का रूप धारण कर अहिल्या के साथ दुराचार किया जिससे गौतम ऋषि ने अहिल्या को शाप देकर पत्थर का बना दिया। पौराणिक कथा के अनुसार श्रीराम के चरण रज के स्पर्श से वह पुन: स्त्री बन गई तथा उसकी सद्गति हुई।
यमलार्जुन
कुबेर के दो पुत्र थे - नलकूबर और मणिग्रीव। एक बार दोनों भाई नदी में जल-क्रीड़ा कर रहे थे और वहाँ नारद मुनि भी पहुँचे। उनदोनों भाइयों ने नारद मुनि का अपमान कर दिया। नारद मुनि ने उन्हें शाप दे दिया जिसके कारण कुबेर पुत्र यमलार्जुन ( आँवले) नामक जुड़वा वृक्ष बनकर गोकुल में पैदा हुए। भगवान कृष्ण ने ऊखल (ओखली) बंधन के समय उनका उद्धार किया।
ऊखल बंधन
बचपन में बालक कृष्ण शरारत किया करते थे और माता यशोदा परेशान हो जाया करती थीं। अत: कृष्ण की शरारतों को रोकने के लिए एक दिन माँ यशोदा ने उनके हाथ ऊखल ( ओखली) से बाँध दिए। उस समय ऊखल लकड़ी की बनी हुई, आकार में बड़ी तथा वज़न में भारी होती थी। किन्तु कृष्ण उस ऊखल को घसीट कर ले गए और उसे दो पेड़ों के बीच फँसा कर झटका दिया जिससे कि दोनों पेड़ उखड़ गए और दो सुंदर राजकुमार प्रकट हुए। इस प्रकार दोनों का उद्धार हुआ।
कालयवन
कथा के अनुसार जब श्रीकृष्ण जरासंध से युद्ध कर रहे थे तब जरासंध का एक साथी असूर कालयवन भी भगवान से युद्ध करने आ पहुंचा। कालयवन श्रीकृष्ण के सामने पहुँचकर ललकारने लगा। तब श्रीकृष्ण वहाँ से भाग निकले। इस तरह रणभूमि से भागने के कारण ही उनका नाम रणछोड़ पड़ा। जब श्रीकृष्ण भाग रहे थे तब कालयवन भी उनके पीछे-पीछे भागने लगा। इस तरह भगवान रणभूमि से भागे क्योंकि कालयवन के पिछले जन्मों के पुण्य बहुत अधिक थे और कृष्ण किसी को भी तब तक सजा नहीं देते जब कि पुण्य का बल शेष रहता है। कालयवन कृष्ण की पीठ देखते हुए भागने लगा और इसी तरह उसका अधर्म बढऩे लगा क्योंकि भगवान की पीठ पर अधर्म का वास होता है और उसके दर्शन करने से अधर्म बढ़ता है। जब कालयवन के पुण्य का प्रभाव खत्म हो गया कृष्ण एक गुफा में चले गए। जहाँ मुचुकुंद नामक राजा निद्रासन में था। मुचुकुंद को देवराज इंद्र का वरदान था कि जो भी व्यक्ति राजा को निन्द्रा से जगाएगा और राजा की नजर पढ़ते ही वह भस्म हो जाएगा। कालयवन ने मुचुकुंद को कृष्ण समझकर उठा दिया और राजा की नजर पढ़ते ही राक्षस वहीं भस्म हो गया।
नोट - वैष्णव संतों की भाँति तुलसीदास राम और कृष्ण को भगवान विष्णु का अवतार मानते थे और उनमें किसी प्रकार का भेद नहीं किया करते थे।
प्रश्न
तुलसीदास भगवान राम को छोड़कर किसी अन्य देवी-देवता की शरण में क्यों नहीं जाना चाहते ? अपने कथन के समर्थन में तुलसीदास ने कौन-कौन से उदाहरण दिए हैं ? विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
उत्तर
गोस्वामी तुलसीदास राम के परम भक्त हैं। उनके अनुसार इस सम्पूर्ण जगत में कोई भी ऐसा ईश्वर नहीं है जो अपने भक्तों का उद्धार बिना किसी भेदभाव के करता हो। भगवान राम अपने भक्तों को पतित या अधम या नीच पाकर भी उनका उद्धार कर देते हैं। तुलसीदास को भगवान राम का पतितपावन रूप अत्यंत हर्षाता है इसलिए वे भगवान के चरणों में ही वास करना चाहते हैं। तुलसीदास राम के चरण छोड़कर अन्यत्र नहीं जाना चाहते। वे मानते हैं कि वही एकमात्र देव हैं जिनका नाम पतितपावन है। वे हठपूर्वक अधमों-नीचों को मुक्ति प्रदान करते हैं। इस प्रसंग में उन्होंने कई पौराणिक मिथकों का उदाहरण दिया है।
खग, मृग, व्याध, पषान, विटप जड़, जवन-कवन सुर तारे।
तिनके हाथ दास तुलसी प्रभु, कहा अपुनपौ हारे॥
जटायु
जटायु एक गिद्ध पक्षी थे। जब रावण सीता का हरण करके आकाश मार्ग से लंका की ओर जा रहा था तब सीता की दुख-भरी वाणी सुनकर जटायु ने उन्हें पहचान लिया और उन्हें छुड़ाने के लिए रावण से युद्ध करते हुए गंभीर रूप से घायल हो गए। सीता को खोजते हुए राम जब वहाँ पहुँचे तब जटायु ने रावण के संबंध में सूचना देकर राम के चरणों में ही प्राण त्याग दिए।
मारीच
मारीच रावण का मामा था। उसने स्वर्ण मृग का रूप धारण करके राम और सीता के साथ छल किया था ताकि राम उसके पीछे चले जाएँ और पीछे से रावण सीता का हरण कर ले। मारीच राम के हाथों मारा गया और उसे सद्गति प्राप्त हुई।
व्याध
व्याध से तात्पर्य शबरी से है जो एक प्राचीन जंगली शबर जाति की स्त्री थी। उसे पूर्वाभास हो गया था कि भगवान राम उसी वन के रास्ते से जाएँगे जहाँ वह रहती थी। जब राम वहाँ पहुँचे तो उसने अपने चखे हुए मीठे बेर खिलाकर उनका आतिथ्य किया। भगवान राम ने उसका आतिथ्य स्वीकार किया तथा उसे परमगति प्रदान की। इस प्रकार उन्होंने व्याध का उद्धार किया। कुछ विद्वानों के अनुसार यहाँ व्याध शब्द का प्रयोग कवि वाल्मीकि के लिए किया गया है जिन्होंने "रामायण" की रचना की थी। यह कहा जाता है कि वाल्मीकि राम का उल्टा नाम जपकर ही तर गए थे।
अहिल्या
भगवान इंद्र ने गौतम ऋषि का रूप धारण कर अहिल्या के साथ दुराचार किया जिससे गौतम ऋषि ने अहिल्या को शाप देकर पत्थर का बना दिया। पौराणिक कथा के अनुसार श्रीराम के चरण रज के स्पर्श से वह पुन: स्त्री बन गई तथा उसकी सद्गति हुई।
यमलार्जुन
कुबेर के दो पुत्र थे - नलकूबर और मणिग्रीव। एक बार दोनों भाई नदी में जल-क्रीड़ा कर रहे थे और वहाँ नारद मुनि भी पहुँचे। उनदोनों भाइयों ने नारद मुनि का अपमान कर दिया। नारद मुनि ने उन्हें शाप दे दिया जिसके कारण कुबेर पुत्र यमलार्जुन ( आँवले) नामक जुड़वा वृक्ष बनकर गोकुल में पैदा हुए। भगवान कृष्ण ने ऊखल (ओखली) बंधन के समय उनका उद्धार किया।
कालयवन
कथा के अनुसार जब श्रीकृष्ण जरासंध से युद्ध कर रहे थे तब जरासंध का एक साथी असूर कालयवन भी भगवान से युद्ध करने आ पहुंचा। कालयवन श्रीकृष्ण के सामने पहुँचकर ललकारने लगा। तब श्रीकृष्ण वहाँ से भाग निकले। इस तरह रणभूमि से भागने के कारण ही उनका नाम रणछोड़ पड़ा। जब श्रीकृष्ण भाग रहे थे तब कालयवन भी उनके पीछे-पीछे भागने लगा। इस तरह भगवान रणभूमि से भागे क्योंकि कालयवन के पिछले जन्मों के पुण्य बहुत अधिक थे और कृष्ण किसी को भी तब तक सजा नहीं देते जब कि पुण्य का बल शेष रहता है। कालयवन कृष्ण की पीठ देखते हुए भागने लगा और इसी तरह उसका अधर्म बढऩे लगा क्योंकि भगवान की पीठ पर अधर्म का वास होता है और उसके दर्शन करने से अधर्म बढ़ता है। जब कालयवन के पुण्य का प्रभाव खत्म हो गया कृष्ण एक गुफा में चले गए। जहाँ मुचुकुंद नामक राजा निद्रासन में था। मुचुकुंद को देवराज इंद्र का वरदान था कि जो भी व्यक्ति राजा को निन्द्रा से जगाएगा और राजा की नजर पढ़ते ही वह भस्म हो जाएगा। कालयवन ने मुचुकुंद को कृष्ण समझकर उठा दिया और राजा की नजर पढ़ते ही राक्षस वहीं भस्म हो गया।
निष्कर्ष में हम कह सकते हैं कि भगवान राम अपनी शरण में आए किसी भी प्रकार के भक्त या साधक का क्ल्याण करने का प्रण ले लेते हैं। भगवान राम की शरण में जाने के उपरांत भक्त हर तरह के मोह-माया से मुक्त हो जाता है।