जामुन का पेड़
कृष्ण चंदर
कठिन शब्दार्थ
लेखक परिचय
हिन्दी और उर्दू के कहानीकार थे। उन्हें साहित्य एवं शिक्षा क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन १९६९ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। उन्होंने मुख्यतः उर्दू में लिखा किन्तु भारत की स्वतंत्रता के बाद हिन्दी में लिखना शुरू कर दिया। इन्होंने कई कहानियाँ, उपन्यास और रेडियो व फ़िल्मी नाटक लिखे। इनका व्यंग्यात्मक ( Ironical) उपन्यास एक गधे की कहानी बहुत चर्चित रही।
कृष्ण चंदर जी ने अपनी रचनाओं में सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक विसंगतियों पर तीखा व्यंग्यात्मक प्रहार किया। कृष्ण चंदर जी की भाषा मुहावरेदार और सजीव है। उसमें व्यंग्य, विनोद और विचारों का समावेश है।
प्रमुख रचनाएँ - नज़ारे, जिन्दगी का मोड़, अन्नदाता, मैं इंतज़ार करूँगा, दिल किसी का दोस्त नहीं, किताब का कफ़न, एक रुपिया, एक फूल, मिट्टी के सनम, रेत का महल, तीन गुंडे आदि।
![krishan-chander.jpg](https://static.wixstatic.com/media/19ed43_4e90d85561cd44e39a0fd09b9c6c36ad~mv2.jpg/v1/fill/w_184,h_184,al_c,q_80,usm_0.66_1.00_0.01,enc_auto/krishan-chander.jpg)
पाठ से पहले
भारत में नौकरशाही (सरकारी नौकरी करते कर्मचारी) का मौजूदा स्वरूप ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की देन है। इसके कारण यह वर्ग आज भी अपने को आम भारतीयों से अलग, उनके ऊपर, उनका शासक और स्वामी समझता है। अपने अधिकारों और सुविधाओं के लिए यह वर्ग जितना सचेष्ट रहता है, आम जनता के हितों, जरूरतों और अपेक्षाओं के प्रति उतना ही उदासीन रहता है।
भारत जब गुलाम था, तब महात्मा गांधी ने विश्वास जताया था कि आजादी के बाद अपना राज यानी स्वराज्य होगा, लेकिन आज जो हालत है, उसे देख कर कहना पड़ता है कि अपना राज है कहाँ ? आज चतुर्दिक अफसरशाही का जाल है। लोकतंत्र की छाती पर सवार यह अफसरशाही हमारे सपनों को चूर-चूर कर रही है।
देश की पराधीनता के दौरान इस नौकरशाही का मुख्य मकसद भारत में ब्रिटिश हुकूमत को मजबूत करना था। जनता के हित, उसकी जरूरतें और उसकी अपेक्षाएँ दूर-दूर तक उसके सरोकारों में नहीं थे।
कृष्ण चंदर की कहानी जामुन का पेड़ सरकारी विभागों की लालफ़ीताशाही का पर्दाफ़ाश करती है। इस कहानी के माध्यम से लेखक ने सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों में फैली अकर्मण्यता पर भी करारा व्यंग्य किया है। हर विभाग अपनी ज़िम्मेदारी को दूसरे विभाग पर तरह-तरह के बहाने बनाकर डाल सेता है। फ़ाइल एक विभाग से दूसरे विभाग तक घूमती रहती है किन्तु परिणाम कुछ नहीं निकलता है।पेड़ के नीचे दबा आदमी प्राण-रक्षा के लिए मृत्यु से जूझता हुआ अंतत: मारा जाता है। प्राय: सरकारी विभाग और दफ़्तर आम व्यक्ति के प्राणों तक को अपनी विकृत फाइल कल्चर का शिकार बना देते हैं।
सरकारी कार्यशैली की निकृष्टता, उसमें निहित अमानवीयता, गैर-जनहितवादी अफसरशाही का दबदबा, विभागों के बीच टाला-टाली का खेल, शिक्षित मध्यमवर्ग का ढकोसलापन, सर्वत्र फैला दिमागी दिवालियापन, इस सबको दर्शाना ही इस कहानी का परम लक्ष्य है।
कृति प्रकाशन द्वारा कहानी पर बनाई गई एनिमेशन फ़िल्म
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ताज्जुब - हैरत, आश्चर्य
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वज़नी - भारी
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मनचला - जो स्वभाव से रसिक हो
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हुकूमत - सरकार
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अंतर्गत - सम्मिलित
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लावारिस - जिसका कोई वारिस न हो
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छान-बीन - जाँच-पड़ताल
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रद्द करना - अस्वीकार करना, निरस्त करना
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तग़ाफुल - उपेक्षा
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खाक होना - बर्बाद होना, मिट्टी में मिलना
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अफ़वाह - बेबुनियाद बात
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वज़ीफ़ा - स्कॉलरशिप, छात्र अनुदान
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दरख्वास्त - अर्जी, आवेदन
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पाँत - पंक्ति
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झक्कड़ - अंधड़, तूफान
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सुस्त - आलसी
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कामचोर - जो काम से जी चुराता हो
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मनचला - अस्थिर चित्त या मन वाला
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खाक होना - धूल में मिलना
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अंदेशा - आशंका, डर
कहानी का उद्देश्य
इस कहानी के माध्यम से लेखक ने सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों में फैली अकर्मण्यता पर भी करारा व्यंग्य किया है। हर विभाग अपनी ज़िम्मेदारी को दूसरे विभाग पर तरह-तरह के बहाने बनाकर डाल सेता है। फ़ाइल एक विभाग से दूसरे विभाग तक घूमती रहती है किन्तु परिणाम कुछ नहीं निकलता है। प्रस्तुत कहानी सरकारी विभागों की लापरवाही और ज़िम्मेदारी से मुँह मोड़ने की प्रवृत्ति को उजागर करती है। इस तरह की कार्य-शैली के अंर्तगत अनावश्यक नियमों का उल्लेख कर विभाग अपनी ज़िम्मेदारी एक-दूसरे पर थोप देते हैं।
शीर्षक की सार्थकता
जामुन का पेड़ कहानी का शीर्षक प्रतीकात्मक है। जब किसी कहानी का शीर्षक सामान्य शाब्दिक अर्थ के अलावा किसी विशेष अर्थ की ओर संकेत करता है तब उस शीर्षक को प्रतीकात्मक शीर्षक की संज्ञा दी जाती है।
प्रस्तुत कहानी में जामुन का पेड़ देश की समस्याओं का प्रतीक है और उसके नीचे दबा व्यक्ति देश का आम नागरिक है जो किसी न किसी बोझ तले दबा हुआ है और छटपटा रहा है। वहीं दूसरी ओर देश की शासन व्यवस्था को चलाने वाला सरकारी कर्मचारी-वर्ग अपने को आम भारतीयों के ऊपर शासक करने वाला स्वामी समझता है। अपने अधिकारों और सुविधाओं के लिए यह वर्ग जितना सचेष्ट रहता है, आम जनता के हितों, जरूरतों और अपेक्षाओं के प्रति उतना ही उदासीन रहता है।
कहानी में जामुन के पेड़ के नीचे दबा व्यक्ति सरकारी कर्मचारियों की उदासीनता और लापरवाही के कारण दम तोड़ देता है। अत: कहानी का शीर्षक सार्थक एवं उपयुक्त है।
अवतरणों पर आधारित प्रश्नोत्तर
संदर्भ - १
"सुबह को जब माली ने देखा, तो उसे पता चला कि पेड़ के नीचे एक आदमी दबा पड़ा है।"
प्रश्न
(i) कौन सी घटना की वजह से एक आदमी पेड़ के नीचे दबा पड़ा था?
(ii) दबे हुए आदमी को देखकर् माली तथा अन्य लोगों की क्या प्रतिक्रिया हुई?
(iii) पहले, दूसरे और तीसरे क्लर्क ने क्या-क्या कहा? इससे उनकी किस मानसिकता का पता चलता है?
(iv) कहानी से सरकारी विभागों की कार्य-शैली के बारे में क्या पता चलता है?
उत्तर
(i) रात को बड़ी ज़ोर से आँधी चली जिससे व्यापार विभाग के सेक्रेटेरियट के लॉन में जामुन का पेड़ गिर गया और उसके नीचे एक व्यक्ति दब गया।
(ii) सुबह जब माली ने देखा कि पेड़ के नीचे एक आदमी दबा पड़ा है तो वह दौड़ा-दौड़ा चपरासी के पास गया, चपरासी क्लर्क के पास और क्लर्क दौड़ा-दौड़ा सुररिंटेंडेंट के पास गया। सुपरिंटेंडेंट दौड़ा-दौड़ा बाहर लॉन में आया। मिनटों में गिरे हुए पेद के नीचे दबे हुए आदमी के चारों ओर भीड़ इकट्ठी हो गई।
(iii) पहले क्लर्क ने कहा कि बेचारा जामुन का पेड़ कितना फलदार था। दूसरे क्लर्क ने कहा कि इसकी जामुनें कितनी रसीली होती थीं। तीसरा क्लर्क लगभग रुआँसा होकर बोला कि वह फलों के मौसम में झोली भरकर ले जाता था। उसके बच्चे जामुन को कितनी खुशी से खाते थे। सभी स्वार्थी मानसिकता के हैं। उन्हें किसी आदमी की दुख-तकलीफ से ज्यादा सरोकार नहीं था।
(iv) इस कहानी के माध्यम से लेखक ने सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों में फैली अकर्मण्यता पर भी करारा व्यंग्य किया है। हर विभाग अपनी ज़िम्मेदारी को दूसरे विभाग पर तरह-तरह के बहाने बनाकर डाल सेता है। फ़ाइल एक विभाग से दूसरे विभाग तक घूमती रहती है किन्तु परिणाम कुछ नहीं निकलता है। प्रस्तुत कहानी सरकारी विभागों की लापरवाही और ज़िम्मेदारी से मुँह मोड़ने की प्रवृत्ति को उजागर करती है। इस तरह की कार्य-शैली के अंर्तगत अनावश्यक नियमों का उल्लेख कर विभाग अपनी ज़िम्मेदारी एक-दूसरे पर थोप देते हैं।