लेखक परिचय
काकी
सियारामशरण गुप्त
सियारामशरण गुप्त का जन्म सेठ रामचरण कनकने के परिवार में श्री मैथिलीशरण गुप्त के अनुज के रूप में चिरगाँव, झांसी में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने घर में ही गुजराती, अंग्रेजी और उर्दू भाषा सीखी। सन् 1929 ई. में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी और कस्तूरबा गाँधी के सम्पर्क में आये। कुछ समय वर्धा आश्रम में भी रहे। उनकी पत्नी तथा पुत्रों का निधन असमय ही हो गया था अतः वे दु:ख वेदना और करुणा के कवि बन गये। 1914 ई. में उन्होंने अपनी पहली रचना मौर्य विजय लिखी।
सियारामशरण गुप्त गांधीवाद की परदु:खकातरता, राष्ट्रप्रेम, विश्वप्रेम, विश्व शांति, सत्य और अहिंसा से आजीवन प्रभावित रहे। इनके साहित्य में शोषण, अत्याचार और कुरीतियों के विरुद्ध संघर्ष का स्वर विद्यमान है।
गुप्त जी की भाषा सहज तथा व्यावहारिक है। 1941 ई. में इन्हें नागरी प्रचारिणी सभा वाराणसी द्वारा "सुधाकर पदक" प्रदान किया गया।
प्रमुख रचनाएँ
खण्ड काव्य -
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अनाथ, आर्द्रा, विषाद, दूर्वा दल, बापू, सुनन्दा और गोपिका।
कहानी संग्रह -
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मानुषी
नाटक -
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पुण्य पर्व
अनुवाद-
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गीता सम्वाद
कविता संग्रह-
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अनुरुपा तथा अमृत पुत्र
काव्यग्रन्थ-
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दैनिकी नकुल, नोआखली में, जय हिन्द, पाथेय, मृण्मयी तथा आत्मोसर्ग।
उपन्यास-
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अन्तिम आकांक्षा तथा नारी और गोद।
निबन्ध संग्रह-
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झूठ-सच।
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कठिन शब्दार्थ
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विलाप - बिलख-बिलखकर रोना
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कुहराम - उपद्रव, शोरगुल
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रुदन - रोना
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उत्कंठित - अधीर, लालायित
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स्टूल - छोटा मेज़
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प्रफुल्ल - प्रसन्न, खिला हुआ
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मुखबिर - भेद खोलने वाला
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अन्यमनस्क - जिसका मन कहीं और लगा हो, अनमना
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समवयस्क - समान आयु का
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अनंतर - उसके पश्चात
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माया - ममता, मोह
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आद्रता - गीलापन, नमी
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तरकीब - विधि
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हतबुद्धि - हैरान
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दाम - मूल्य
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अग्नि-संस्कार - हिंदू धर्म के अनुसार मृत शरीर को अग्नि द्वारा जलाना
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ओछी - छोटी
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अकस्मात - अचानक
कहानी का उद्देश्य
प्रस्तुत कहानी "काकी" एक बाल-मनोवैज्ञानिक कहानी है। जिसमें एक बालक के मातृ-वियोग की पीड़ा को दर्शाया गया है। कहानी में श्यामू माँ की मृत्यु के बाद उस पीड़ा को सहन नहीं कर पाता है और उसका मन कहीं नहीं लगता है। जीवन-चक्र से अनभिज्ञ वह अपनी माँ को ईश्वर के यहाँ से लाने के लिए पैसों की चोरी करता है और डोरी मँगवाता है जिसकी सहायता से वह अपनी मृत माँ को आकाश से नीचे धरती पर ला सके। इस प्रकार यह साबित होता है कि बालकों का हृदय अत्यंत कोमल, भावुक और संवेदनशील होता है और वे मातृ-वियोग की पीड़ा को सहन नहीं कर पाते हैं।
शीर्षक की सार्थकता
कहानी का आरंभ ही श्यामू की माँ उमा, जिसे वह काकी कहता है, के देहांत से होती है। अपनी माँ के देहांत के शोक में श्यामू हमेशा डूबा रहता है। वह दिन-रात काकी के लिए रोता रहता है। वह हर हाल में चाहता है कि उसकी माँ काकी उसके पास आ जाए। उसे पाने के लिए वह भगवान राम के पास पतंग भेजना चाहता है। इस कार्य के लिए वह अपने पिता के जेब से पैसों की चोरी करता है। पतंग पर काकी के नाम का चिट लगाकर उसे वापस आकाश में भेजना चाहता है। ये सारी बातें श्यामू के अपनी माँ काकी के प्रति असीम प्रेम को दर्शाती हैं। इन सब बातों यह पता चलता है कि यह कहानी आरंभ से अंत तक काकी के इर्दगिर्द ही घूमती है।अतः कहानी का यह शीर्षक सार्थक एवं उचित है।
चरित्र-चित्रण
श्यामू
श्यामू पाँच साल का एक अबोध तथा बहुत संवेदनशील बालक है। वह अपनी माँ से बहुत प्रेम करता है। माँ की मृत्यु के बाद वह हमेशा रोता रहता है। रोना शांत हो जाने के बाद भी वह शोक में डूबा रहता है। आकाश में उड़ती पतंग को देखकर वह काकी को पतंग द्वारा नीचे उतारने की योजना बनाता है। इस योजना के लिए उसे चोरी भी करनी पड़ती है और वह मार भी खाता है।
भोला
भोला सुखिया दासी का लड़का तथा श्यामू का समव्यस्क है। वह श्यामू से अधिक समझदार है। श्यामू द्वारा पतंग भेज कर अपनी काकी को नीचे उतारने की तरकीब भोला को भी अच्छी लगी परंतु कठिनाई रस्सी को लेकर थी। उसने अपनी समझ का परिचय देते हुए श्यामू से कहा कि काकी को नीचे उतारने के लिए मोटी रस्सी चाहिए। वह डरपोक स्वभाव का है इसीलिए विश्वेश्वर की एक ही डाँट पर श्यामू के पैसे चुराने वाली बात को बता देता है। इस प्रकार भोला के चरित्र में भी बालपन की शादगी दिखाई देती है।
विश्वेश्वर
विश्वेश्वर श्यामू के पिता हैं। वे परिवार से स्नेह करते हैं, तभी पत्नी की असामयिक मृत्यु के पश्चात वे भी काफी उदास रहने लगते हैं। उन्हें गलत बातें पसंद नहीं हैं। वे अपने कोर्ट से पैसे चुराने की बात को जानकर क्रोधित हो उठते हैं और श्यामू को दो तमाचे लगाकर पतंग फाड़ देते हैं, किंतु फटी पतंग पर जब वे काकी लिखा देखते हैं, तब उनका क्रोध शांत हो जाता है। फिर वे अपने किए पर दुखी हो पछताने लगते हैं। इससे पता चलता है कि भी संवेदनशील भी हैं।
अवतरणों पर आधारित प्रश्नोत्तर
संदर्भ - १
"वर्षा के अनंतर एक दो दिन में ही पृथ्वी के ऊपर का पानी तो अगोचर हो जाता है, परंतु भीतर-ही-भीतर उसकी आर्द्रता जैसे बहुत दिन तक बनी रहती है, वैसे ही उसके अंतस्तल में वह शोक जाकर बस गया था।"
(i) यहाँ किसकी बात की जा रही है ? उसका परिचय दीजिए।
उत्तर - (i) यहाँ श्यामू की बात की जा रही है। श्यामू विश्वेश्वर का पुत्र है और उसकी काकी (माँ) का देहांत हो चुका है। वह एक अबोध बालक है। वह अपनी माँ से बहुत प्यार करता है और उसका वियोग सह नहीं सकता। वह जन्म-मृत्यु के सत्य से अनजान है इसलिए उसे लगता है कि उसकी माँ ईश्वर के पास गई है जिसे वह पतंग और डोर की सहायता से नीचे उतार सकता है। इसके लिए वह अपने पिता के कोट की जेब से पैसे चोरी करता है।
(ii) उपर्युक्त पंक्तियों का संदर्भ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - (ii) प्रस्तुत पंक्तियों का संदर्भ यह है कि श्यामू अपनी माँ की मृत्यु के बाद बहुत रोता है और उसे चुप कराने के लिए घर के बुद्धिमान गुरुजनों ने उसे यह विश्वास दिलाया कि उसकी माँ उसके मामा के यहाँ गई है। लेकिन आस-पास के मित्रों से उसे इस सत्य का पता चलता है कि उसकी माँ ईश्वर के पास गई है। इस प्रकार बहुत दिन तक रोते रहने के बाद उसका रुदन तो शांत हो जाता है लेकिन माँ के वियोग की पीड़ा उसके हृदय में शोक बनकर बस जाती है।
(iii) उसके व्यवहार में क्या परिवर्तन आया ? पंक्तियों के माध्यम से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - (iii) माँ की मृत्यु के बाद श्यामू अत्यंत दुखी हो गया। वह पहले बहुत रोया करता था लेकिन समय के साथ धीरे-धीरे उसका रोना शांत होता गया, परंतु उसके अंतस्तल की पीड़ा शांत न हो सकी। वह प्राय: अकेला रहने लगा और हमेशा आकाश की ओर देखता रहता। जिस प्रकार वर्षा के एक-दो दिन बाद धरती के ऊपर का पानी तो सूख जाता है लेकिन उसके भीतर की आर्द्रता बहुत दिन तक बनी रहती है, उसी प्रकार श्यामू का रोना तो बंद हो गया लेकिन मातृ-वियोग की पीड़ा उसके हृदय में जाकर बस गई थी।
(iv) "बालक का हृदय अत्यंत कोमल, भावुक और संवेदनशील होता है और वे मातृ-वियोग की पीड़ा को सहन नहीं कर पाते" - प्रस्तुत कहानी "काकी" के माध्यम से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - (iv) प्रस्तुत कहानी "काकी" एक बाल-मनोवैज्ञानिक कहानी है। जिसमें एक बालक के मातृ-वियोग की पीड़ा को दर्शाया गया है। कहानी में श्यामू माँ की मृत्यु के बाद उस पीड़ा को सहन नहीं कर पाता है और उसका मन कहीं नहीं लगता है। जीवन-चक्र से अनभिज्ञ वह अपनी माँ को ईश्वर के यहाँ से लाने के लिए पैसों की चोरी करता है और डोरी मँगवाता है जिसकी सहायता से वह अपनी मरी माँ को आकाश से नीचे धरती पर ला सके। इस प्रकार यह साबित होता है कि बालकों का हृदय अत्यंत कोमल, भावुक और संवेदनशील होता है और वे मातृ-वियोग की पीड़ा को सहन नहीं कर पाते हैं।
संदर्भ - २
अकस्मात् शुभ कार्य में विघ्न की तरह उग्र रूप धारण किए हुए विश्वेश्वर वहाँ आ घुसे।
(i) "शुभ कार्य" और "विघ्न" शब्दों का प्रयोग किस-किस संदर्भ में किया गया है ?
उत्तर - (i) "शुभ कार्य" का प्रयोग उस संदर्भ में किया गया है जब श्यामू अपनी माँ को ईश्वर के यहाँ से नीचे लाने के लिए पतंग और दो मज़बूत रस्सियाँ मँगवाता है और उस पर काकी लिखवाता है। श्यामू अत्यंत प्रसन्न मन से अपने साथी भोला के साथ पतंग में रस्सी बाँध रहा था।
"विघ्न" का प्रयोग उस संदर्भ में किया गया है जब श्यामू चोरी किए गए पैसे से पतंग खरीदता है।जैसे ही वह शुभ कार्य संपन्न करने जाता है वैसे ही उसके पिता विश्वेश्वर विघ्न के रूप में वहाँ उपस्थित हो जाते हैं।
(ii) श्यामू पतंग पर किससे, क्या लिखवाता है और क्यों ?
उत्तर - (ii) श्यामू जवाहर भैया से एक कागज़ पर काकी लिखवाता है, जिसे वह पतंग पर चिपकाता है, ताकि वह पतंग सीधे उसकी माँ के पास चली जाए और उसकी माँ उस पर अपना नाम देखकर पतंग की सहायता से आसानी से राम के यहाँ से नीचे उतर आए।
(iii) भोला का परिचय देते हुए बताइए कि वह श्यामू की मदद किस प्रकार करता है ?
उत्तर - (iii) भोला सुखिया दासी का लड़का था और श्यामू का हमउम्र था। वह श्यामू से अधिक चतुर और समझदार था, इसलिए वह उसे सलाह देता है कि श्यामू मोटी रस्सी मँगवा ले। पतली रस्सी से काकी नीचे नहीं उतर पाएगी और रस्सी के टूटने का भय भी बना रहेगा। भोला बहुत डरपोक भी था, इसलिए विश्वेश्वर के एक ही डाँट से वह सारा रहस्य उजागर कर देता है।
(iv) विश्वेश्वर हतबुद्धि होकर क्यों खड़े रह गए ? घटना का विवरण देते हुए लिखिए।
उत्तर - (iv) विश्वेश्वर को जब इस बात का पता चलता है कि उसके कोट की जेब से एक रुपए की चोरी हुई है तब वह भोला और श्यामू के पास आते हैं। भोला को डाँटने से उन्हें श्यामू की सच्चाई का पता चलता है कि उसने ही रुपए की चोरी की है। वे श्यामू को धमकाने और मारने के बाद पतंग फाड़ देते हैं। लेकिन जब उन्हें भोला द्वारा यह पता चलता है कि श्यामू इस पतंग के द्वारा काकी को राम के यहाँ से नीचे लाना चाहता है, विश्वेश्वर हतबुद्धि होकर वहीं खड़े रह जाते हैं।