फेक न्यूज़ के खतरे सर पर चढ़ कर बोलने लगे हैं. क्या सरकार , क्या पार्टियाँ और क्या चुनाव लड़ने वाले सब के सब इस महा मारी से डरे हुये हैं.
यह कोई पहली बार नहीं है की फेक न्यूज़ ने अपना रूप दिखाया है. महाभारत के युद्ध में युधिष्ठिर ने अस्व्थामा की मृत्यु का झूठा प्रचार कर द्रोणाचार्य को अर्जुन के हाथों मरवा दिया था. बाद के दिनों में भी युद्ध और प्रेम के लिए फेक न्यूज़ का सहारा लेना एक आम बात हो गयी. लेकिन वर्तमान समय में सोशल मीडिया के कारण यह समस्या विकराल हो गयी है. हर जीत के फैसले भी फेक न्यूज़ के सहारे होने लगे हैं. टिकट किसको मिला इसकी फेक न्यूज़ तो रोज पढ़ने को मिल रही . है. इस समस्या से पूरा मीडिया त्रस्त है. इसी के साथ प्लांटेड न्यूज़ भी फेक न्यूज़ की बड़ी बहन है. इस काम में सरकार , बड़े औद्योगिक घराने सब मिले हुए हैं. सबके अपने
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अपने स्वार्थ है और इन स्वार्थों को पूरा करने का लालच हैं.
फेक अफवाहों की तरह ही बड़ी तेजी से फैलती हैं क्योंकि फेक न्यूज़ के साथ जिस प्लेटफार्म से आती है उसका आधार होता है. इस आधार के कारण विश्वनीयता बनती बिगड़ती है. व्हात्ट्स एप्प विश्व विद्यालय में रोजाना ऐसी हजारों न्यूज़ टहलती रहती है , इन में से अपने काम की फेक न्यूज़ को आदमी आगे बढाता रहता है. फेस बुक, इन्स्टा ग्राम ट्विटर आदि भी अपना योगदान करते हैं. अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में भी झूठे समाचारों ने अपना योगदान दिया था. भारत में समस्या ज्यादा जटिल है यहाँ पर फेक न्यूज़ फ़ैलाने का काम बड़ी बड़ी कम्पनियां बंगलौर , सिएटल, गुरु ग्राम में कर रही हैं पेड न्यूज़ की तरह ही फेक न्यूज़ एक बड़ा व्यवसाय बन गया है. जो चुनाव के समय और भी ज्यादा तेज़ी से फैलता है. जिनको टिकट नहीं मिला वे भी टिकट के लिए या सामने वाले को हराने के लिए फेक न्यूज़ का सहारा लेते हैं प्लांटेड न्यूज़ के लिए तो मंत्रियों के कार्यालय यहाँ तक की पी एम ओ तक काम करते हैं. अप्रेल में फेक से सम्बंधित एक आदेश को सरकार को तुरंत वापस लेना पड़ा. फेक न्यूज़ की कोई निश्चित परिभाषा देना सम्भव नहीं है.
फेक न्यूज़ असली न्यूज़ से भी ज्यादा तेज़ी से फैलती है . फेक न्यूज़ को सामान्य भाषा में अफवाह कहा जा सकता है. फेक न्यूज़ के कारण दंगे, आगज़नी , हत्या , लूट पाट तक हो जाती है .
आखिर इस को कैसे रोका जा सकता है?
सोशल मीडिया के अलावा माउथ पब्लिसिटी भी एक अन्य तरीका है जो फेक न्यूज़ को फैला ता है, लेकिन इसे रोकना मुश्किल है.
सोशल मीडिया अपने विचार शेयर करे लेकिन उनकी सत्यता को भी जांचे . लेकिन फेक न्यूज़ फ़ैलाने वाले के अपने स्वार्थ होते हैं, पैसा भी लिया दिया जाता है. फेक न्यूज़ एक तरह का वैचारिक प्रदूषण है , एक धुंध फोग- स्मोग है. इस से बचना के उपाय होने चाहिए.
मुख्य धारा के लोग इस पर लगाम लगाने में असफल है , ज्यादातर मीडिया का ध्रुवीकरण हो चूका है , वे जो तटस्थ होने का दावा करते हैं वे भी बिकने को तैयार हैं , वे नहीं तो मालिक बिकने को तैयार हैं. मालिक नहीं तो अख़बार-चेन्नल बिक जाता है. फेक न्यूज़ को कोई भी रोक पायेगा ऐसा नहीं लगता.
एक सेमिनार में फेसबुक, ट्विटर , व्हाट्स एप्प आदि से जुड़े लोग मानते हैं कि यह एक बड़ा खतरा है और वे लोग इसके प्रति गंभीर है, मुख्य मीडिया की समस्या ये है की असली खबर कौन सी है . फेक या अफवाह कौन सी है? फेक न्यूज़ को जन जागरण से ही रोका जा सकता है. जनता यदि जागरूक होगी तो सोशल मीडिया भी अपने जिम्मेदारी समझेगा और फेक न्यूज़ या गलत समाचार को रोकने में मदद मिलेगी.
यह समस्या केवल भारत की ही हो ऐसा नहीं है अमेरिका में फेसबुक के मालिक को सरकार व् संसद से माफ़ी मांगनी पड़ी थी. भारत में भी गलत समाचारों के प्रकाशन पर अख़बारों के मालिकों व् संपादकों को संसद व् विधानसभाओं व् सार्वजनिक प्लेटफार्म पर माफ़ी माँगनी पड़ी थी. लेकिन वे इक्का दुक्का मामले थे अब तो कुएं में ही भंग पड़ गयी है. मीडिया चाहकर भी कुछ नहीं कर सकता क्योंकि संपादक, मालिक, रिपोर्टर आदि में से कोई न कोई बिकने को तैयार है बस उचित कीमत चाहिये .
फेक न्यूज़ को समाचारों के रोपण जैसा ही समझा जाना चाहिए.
समाचारों के बिना जीवन नहीं व बिना फेक न्यूज़ के समाचार नहीं.
फेक न्यूज़ आने वाले चुनावों, बनने बिगड़ने वाली सरकारों में एक बड़ा रोल अदा करेगी .
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यशवंत कोठारी , ८६, लक्ष्मी नगर , ब्रह्मपुरी , जयपुर-३०२००२